1. “जित – जित मैं निरखत हूँ” का लेखक कौन है?
Answer: कबीरदास
2. “जित – जित मैं निरखत हूँ” किस प्रकार की रचना है?
Answer: निर्गुण भक्ति
3. “जित – जित मैं निरखत हूँ” में लेखक ने किसे निरखने की बात की है?
Answer: स्वयं को
4. “जित – जित मैं निरखत हूँ” में कबीरदास ने किस पर विचार किया है?
Answer: आत्मा और परमात्मा पर
5. कबीरदास की रचनाओं में किस प्रकार का भक्ति भाव प्रकट होता है?
Answer: निर्गुण भक्ति
6. “जित – जित मैं निरखत हूँ” में कबीरदास ने क्या सत्य माना है?
Answer: ईश्वर का नाम
7. कबीरदास के अनुसार, ईश्वर का साक्षात्कार कैसे किया जा सकता है?
Answer: आत्मनिरीक्षण और साधना से
8. “जित – जित मैं निरखत हूँ” में कौन-सा दर्शन प्रमुख है?
Answer: निर्गुण भक्ति दर्शन
9. कबीरदास ने किसे “मूल” कहा है?
Answer: आत्मा को
10. “जित – जित मैं निरखत हूँ” में कबीरदास ने किसकी आलोचना की है?
Answer: अंधविश्वास और कर्मकांड
11. कबीरदास किस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते हैं?
Answer: साधुकरी
12. कबीरदास के अनुसार, सत्य की प्राप्ति के लिए क्या आवश्यक है?
Answer: गुरुकृपा
13. “जित – जित मैं निरखत हूँ” में कौन-सी मुख्य भावना प्रकट होती है?
Answer: वैराग्य
14. कबीरदास के भक्ति मार्ग को क्या कहा जाता है?
Answer: सहज मार्ग
15. कबीरदास के अनुसार, मनुष्य को किससे बचना चाहिए?
Answer: मोह और माया से
16. “जित – जित मैं निरखत हूँ” का संबंध किस भक्ति आंदोलन से है?
Answer: निर्गुण संत परंपरा
17. कबीरदास ने किस माध्यम से अपनी बात कही है?
Answer: पद और दोहे
18. कबीरदास की रचनाओं में मुख्यतः किन विषयों का वर्णन मिलता है?
Answer: आत्मा, माया और ईश्वर
19. कबीरदास के अनुसार माया किसे कहते हैं?
Answer: धन और संपत्ति को
20. “जित – जित मैं निरखत हूँ” का प्रमुख संदेश क्या है?
Answer: आत्मा और ईश्वर की पहचान